अपनों से मिला दुखः व्यक्त करना सबके बस की बात नहीं। मनुष्य हमेशा अपनों के बीच घिरा रहना पसंद करता है।
अपनों से सम्मान की चाहत हर किसी को रहती है । नाते-रिश्तों और मोह के पाश में बंधा हुआ मनुष्य अपनी थोड़ी सी भी अवहेलना सह नहीं पाता। अपनों से मिली छोटी सी भी चोट उसके लिए नासूर बन जाती है।
यहाँ पर भी कवी अपना दुखः प्रकट करते हुए कह रहा है कि उसके दुखः की वजह, उसकी आँखों में आए हुए आँसुओं के कारणीभूत भी उसके अपने ही लोग हैं जो कभी कहा करते थे कि, "तुम रोते हुए अच्छे नहीं लगते " ।
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