बातें भी तुम्हारी किया करतें हैं, याद भी तुम्हें ही किया करते हैं, फिक्र भी तुम्हारी ही रहती है । मेरे दिल के मुजरिम भी तुम हो और दिल की अदालत में जज भी तुम ही हो । मैं तुम्हारे खिलाफ अपील भी नहीं कर सकता क्योंकि तुम्हें मुजरिम ठहराना मेरे दिल को मान्य नहीं ।
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