शक एक ऐसी बीमारी है जिसकी कोई दवा नहीं । पुराने, प्रगाढ़ और करीबी रिश्तों में भी शक दरार डाल देता है । अपने भी पराये नजर आने लगते हैं। न जाने कितने परिवार केवल शक की वजह से बिखर जाते हैं । जिनके लिए हम जान तक देने की बात करते थे, अब उन्हीं के प्रति नफरत की भावना पैदा हो जाती है ।
कवि कहता है कि, बेदाग चेहरों में भी, जिनकी तारीफ करते कभी हम थकते नहीं थे, जिन्हें हम कभी अपना आदर्श मानते थे, उनमें भी अब हमें दाग नजर आने लगे, बुराईयाँ नजर आने लगी । कवि कहता है कि, ये शक की धुंध भी बडी़ अजीब है, इसने अपनों से अपनों को पराया कर दिया ।
इसके बावजूद भी कवि को ये आशा है कि, कभी तो यह धुंध छटेगी, और फिर अपनों से फिर मुलाकात होगी ।

Doubt is a disease which has no medicine. Even in old, intimate and close relationships, suspicion puts crack. Do not know how many families get scattered because of doubt only.
The poet says , To whom we considered as our ideal, now the stains are visible to us in them, the evils begin to appear in them . The poet says that, the mist of doubt is also very strange, it creates difference among us.
In spite of this, the poet hopes that, after sometime he will get rid of this mist, and then again he will meet their own friends.
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